सच कौन नही जनता?
सच कौन नही जनता?
सच कौन नही जानता ?
सच झूटी सी आजादी का
हमारी तुम्हारी…
हो कही भी घर में या बाहर
देश ,प्रदेश या हो विदेश
हालात कही कुछ अच्छे
कही बुरे…पर झुलसती
फिर भी #ओ स्त्री
है ये जमी ,जिंदगी उसी से
हरीयाली ,खुशहाली उसी से…
घर में किलकारी उसी से
नन्हों से भरी गोद उसी से
चुल्हें पे रोटी उसी से..
प्यार ,ऐहसास उसी से..
घर भी घर उसी से..
रिश्तें ! निभाऐ संजोए वहीं
आँखो का निर पोछें वहीं
मुस्कान गालों पे लाए वहीं
है वो तो जिंदा जिंदगी..
है ऐ सच तो
उजडती वहीं ,सिसकती वहीं
बरबाद होती ,लुटी जाती
कहीं पिंजडों में है सजाई जाती
दर्द मे वहीं ,जख्मी भी वहीं.
हैरान हूँ के वक्त गुजरा
सदिया शायद..
छोडें निशां ,परचम फैलाए ……
पर फिर भी ,फिर भी
जरूरत उसके लिए हि लडाई की
मागना हक उसके लिऐ
रोक दो ऐ बरबादिया के
ओ आज तो खुल के जिए।