हारा दिल
हारा दिल
एक सिर्फ़ हम ही हैं...
जो कभी अपनें अरमां सरे आम ना बयां कर पाए
घूंट पे घूंट पी गए ग़म अपना जाहिर ना कर पाए,
लोग महफिल में पढ़ते रहे शान में कशीदे अपनी
हम मुंह छुपाए पोंछते रहे रुमाल से आंखें अपनी,
इस हारे दिल की बाज़ी लिए जाएं तो जाएं कहां
कि आइना भी नापसंद करने लगा सूरत अपनी,
क्या हर मुहब्बत का यही फकत सिला होता है यारों
ख़ुद से नज़र मिलाना भी समझते हैं अब गुस्ताखी अपनी।