विराम
विराम
ये राहतें चाहतें आस पास बिछा ली हैं
थोड़ी खुदगर्जी की आदतें बना ली हैं
सुकून को तलाशना छोड़ दिया है अब
मैंने ख़ामोशी को सहेली बना ली है...
भर गया मन सुन सुन के फसाने सबके
घुटते लोगों ने खाली किए गु़बार अपने
मुझे बता के दास्तान ख़ुद हल्के हो गए
बीच हैरां परेशां सा छोड़कर गुल हो गए
सब्र का अंत हुआ उन्हें क्या दिलासा कहूं
कब तक पराए बस्तों का बोझ लेती फिरूं
बारीक छलनी से दुखों को अलग किया है
उन्हें जाकर दूर दरिया में अब मुझे बहाना है
फूल से पत्थर और पत्थर से लोहा बनी
थक गई उनके सहारे की दीवार बन के
सब्र सुकून ठहराव के द्वीप पर मौन हूं
जीवन के विराम से खुद को घेर लिया है।