मेला बसंत का
मेला बसंत का
जैसे नीर वर्षा बाद धुली धरा
सौंधी माटी धुला गीला गगन
जैसे सूरज की संतरी किरन
नव पल्लव पे भंवरे का गुंजन
जैसे निज मंदिर मां सरस्वती
अक्षत पुष्प से विनय निवेदन
जैसे प्रभु में विलीन हर काया
चमकी आभा तज मोह माया
जैसे मोर कोयल मस्त मलंग
बहके चहके महके हर आंगन
जैसे इंद्रधनुष की बिखरी छटा
भू गगन क्षितिज से अनंत तक
जैसे हृदय बजे मद्धम ध्वनि धारा
उजली काया निकला मैल कारा
हर राग में ऊंचाई भी गहराई भी
जैसे मन रंग गया सतरंगी सारा
नर नारी हर्षित, कैसा है ये अभिनय
ये क्या उल्लास हर्ष, कैसा है प्रणय
ये अवसर बसंत का उत्सव उल्लास का
हर मन को गुदगुदाता ये मेला बसंत का।