हादसे
हादसे
हो रहे हैं हादसे कुछ ज्यादा ही आजकल।
बढ़ती सुविधाओं का जीवन में दिख रहा है सब पर असर।
जीवन हुआ है अस्त-व्यस्त
बस मोबाइल है सबके हाथ में।
पता नहीं पड़ता किसकी कब कहां पड़ती है नजर।
लोग तो कुछ करते भी नहीं और कहीं जाते भी नहीं।
फिर भी सबको है सबके पल-पल की खबर।
उन्हीं खबरों में से ही लोगों को कुछ ऐसा मसाला मिल जाता,
वही मसाला फिर किसी हादसे का कारण है बन जाता।
सफाई देना भी सार्वजनिक है,
शिकायत भी सार्वजनिक,
प्रत्येक की जिंदगी में प्रत्येक है घुस जाता।
झूठ दिखावे का जीवन कब तक है चल पाता,
इसी कारण बढ़ रहे हैं हादसे।
आज कोई भी तो इन हादसों से ना बच पाता।