गज़ल नहीं कहता
गज़ल नहीं कहता
आँखों को झील,चेह्रे को कंवल नहीं कहता
मुहब्बत से लबरेज़ कोई गज़ल नहीं कहता ।
मेरी रौशनाई है हक़ीक़त के पसीने से बनी
कभी हुस्न के ज़ुल्फों को बादल नहीं कहता ।
बदहाल तक़दीर,मेहनत मशक़्क़्त की तस्वीर
फटेहाल नौजवाँ को प्रेमी पागल नहीं कहता ।
ज़ुर्म लगती हैं जरूरतें, दम तोड़ती हैं उम्मीदें
गुरबते ज़िन्दगी में होगी खलल नहीं कहता ।
चीख रही है खामोशी से,खुदाई भी खुद्दारी में
जितेगी सच्चाई अंत मेंआजकल नहीं कहताl
मैं भी तो हूँ आखिर एक आदमी ही अजय
करूंगा हमेशा उसूलों पर अमल नहीं कहता l
