गूंगा और खामोश
गूंगा और खामोश
ना गूंगा बात करता है
ना ही खामोश
कुछ कहता है
मगर दोनों के पास
कहने को है बेशुमार
लिखने लगे तो
संपूर्ण धरारूपी कागज़
सारे समंदरों की स्याही
पड़ जाए कम
लेकिन,
बेखबर है दोनों इससे
इतनी सारी,
साम्यताओं के बाद भी
एक अंतर है दोनों में
वो ये-
एक को ज़बान है
तो दूजे को ज़बान नहीं !
