गुनाहगार
गुनाहगार
हाँ, गुनाह किया है मैंने,
गुनाहगार हूँ मै,
जब जब तार तार हुई मानवता,
बस सिसकी,बोल नही पाई मैं,
बहुत गुनाह है मेरे,
जब सुन रही थी मैं शोर सबके,
पर पीड़ित अबला की मौन सिसकी
सुन नही पाई मैं,
मैं भी बनती चली गयी
उस निष्ठुर समाज का हिस्सा,
कुछ दर्द मानवता का न हर पाई मैं,
अन्याय तो बहुत होता रहा,
पर मैं गुनहगार अन्याय क्यो सहती रही,
कह दिया मुझे तू है अबला,
पर मैं अबला क्यों बनी रही,
पर अब नही अब और नही,
नारी की ये दुर्बलता अब नही,
पापी की दुर्जनता और नही,
मत सहो अब अन्याय,
यह भी एक गुनाह हैं,
पाप यह अन्याय करने जैसा है,
मत बनो अब गुनाहगार,
अब मत बनो गुनहगार।।