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Zuhair abbas

Drama

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Zuhair abbas

Drama

गुम होती इंसानीयत

गुम होती इंसानीयत

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किसी के रोने पर तुम मुस्कुरा रहे हो

केसे शख्स हो और खुद को‌‌ इनसान बता रहे हो।


ना दया ना दिल में हमदर्दी रखते हो

क्यों कमज़ोर कि मुश्किलों पर उसे सता रहे हो।


एक दूसरे को बेच कर खाने का इरादा रखते हो

क्यों इनसानीयत के नाम पर हेवानीयत फ़ेला रहे हो।


ना फिक्र मासूम की है ना औरत की इज़्ज़त करते हो

तकलीफ में भी किसी मजबूर कि तुम

मदद करने से खुदको बचा रहे हो।


हिफाज़त तू क्या करोगे देश कि अपने

मतलब के लिए देश ही को दांव पर लगा रहे हो।


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