गर्दभ-शासन
गर्दभ-शासन
एक बार एक क्लांत जंगल में गधे बहुत बढ़ गए थे,
कुछ ज़मीं पर खड़े थे, कुछ सिंहासन पे चढ़ गए थे!
शेर परेशान था, इस जनसँख्या विस्फोट के कारण,
गधों के कारण अवरुद्ध था शेष पशुओं का पालन!
गधों ने कहा कि बहुमत है, तो ज़्यादा भोजन हमें दो,
हमें बस भोजन दे दो और बाकियों तुम भूखे ही रहो!
गधे तो गधे ही थे सियारों ने जाकर उन्हें भड़का दिया,
उनकी बातों में आकर, गर्दभों ने वन में बलवा किया!
शेर जो सत्ता में था, परेशान था इस विप्लव के कारण,
गधों की वजह से विभाजित था वो शांति से रहता वन!
जो पशु मरते दंगे में सियार उनको अपना भोज बनाते,
ख़ुद भी पेट भरते और अपने चाटुकारों को भी खिलाते!
बलवा इतना बढ़ गया कि शेर को पद-विहीन किया गया,
सिंहासन पर सिंह की जगह आकर बैठा कोई गर्दभ नया!
सियार खुश थे कि गधे को कभी भड़का दंगा करवा देंगे,
ख़ुद के भोजन के इंतज़ाम के लिए सैंकड़ों को मरवा देंगे!
जंगल में अभी भी गधे ही सिंहासन पर आरूढ़ हो बैठे हैं,
करते वही हैं गधे जो उनके चाटुकार सियार उन्हें कहते हैं!
आज भी देखो तो वो क्लांत वन-उपवन वैसे ही जल रहा है,
आज भी देखो तो जँगलों में गधों का शासन ही चल रहा है!