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Rajit ram Ranjan

Tragedy

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Rajit ram Ranjan

Tragedy

ग़म कि रातें..!

ग़म कि रातें..!

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अगर मेरा ख़्याल आये तो...

समझ लेना कि तेरी आँख नम होगी...

तेरे नाराज़ होने से ये चाहत भी ना कम होगी...

तेरी नज़र में गर मैं निकम्मा, आवारा...

तो तू भी मेरी नज़र में बेवफ़ा सनम होगी...!


तुमसे इश्क़ करने कि ये जो सज़ा हमने पाई है...

अब तो भीड़ में भी लगता है कि जैसे तन्हाई है...

ये जो हर रोज लगती है, तेरे सूरत के जैसा.... 

सच-सच बता तू ही है या तेरी परछाई है...

तेरी जरूरत इस दिल को हर पल होगी...

तेरी नज़र में गर मैं निकम्मा, आवारा...

तो तू भी मेरी नज़र में बेवफ़ा सनम होगी...!


मोहब्बत में रूठना-मनाना अब तो खेल हो गया है...

अच्छी-ख़ासी ज़िन्दगी थी अपनी अब तो जेल हो गया है...

ये इश्क़ में रोज-रोज कि गुस्ताखियाँ हमसे माफ़ नहीं कि जाती...

रत्ती-रत्ती उसकी याद इस दिल को बहुत जलाती...

ग़म कि रातें काटना अब तो बड़ी मुश्किल होगी...

तेरी नज़र में गर मैं निकम्मा, आवारा...

तो तू भी मेरी नज़र में बेवफ़ा सनम होगी...!


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