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Manoj Mahato

Romance

4.5  

Manoj Mahato

Romance

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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18


नमी आँख की कम नहीं हो रही है

जुदा पाॅंव से अब ज़मीं हो रही है


मिली चोट हमको मुहब्बत में ऐसी

नहीं आज राहत कहीं हो रही है


जहाॅं चोट खाई जिगर ने हमारे

दवा मर्ज की अब वहीं हो रही है


नज़र देखती है बहुत दूर लेकिन

नुमाया कहीं तू नहीं हो रही है


जहाॅं प्यार के फूल खिलते कभी थे

वहीं आज बंजर ज़मीं हो रही है।


    


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