अपना क्यूं नहीं लेते?
अपना क्यूं नहीं लेते?
किसी हवा सी छू कर गुजर गई फिर से।
तुमने ये भी नहीं सोचा हवा आग को नहीं देते ?
दिल में कुछ उम्मीदों के चिराग जल रहे हैं।
कभी तुफ़ान बनकर ये बुझा क्यूं नहीं देते ?
यूं जो पलक झपकते ही तुम ओझल हो जाते हो।
कभी ठहरकर कुछ पल साथ बिता क्यूं नहीं लेते ?
मैं तो एक कतरा हूं समंदर में कहीं खो जाऊंगा।
आगे आकर गले से तुम लगा क्यूं नहीं लेते ?
बड़ी हसरत से हर रोज़ राह तकता हूं तुम्हारी।
कभी सामने आकर तुम मुस्कुरा क्यूं नहीं देते?
जिंदगी रोज़ हाथ से निकल रही है थोड़ी थोड़ी।
मौत आने से पहले मुझे तुम अपना क्यूं नहीं लेते?
मनोज वक्त निकल गया तो पछताओगे तुम भी।
वक्त रहते सारी उलझनें सुलझा क्यूं नहीं लेते ?

