गजल।
गजल।
रात खुमारी में जा उतरीं कुछ जुल्फें रूखसारों में।
क्यों पागल मन खुशी खोजता है गम के गलियारों में।
जब भी आशाओं के पंछी सागर पार को निकल पड़े।
फिर भी राह नहीं भटके वो इन जालिम अंधियारों में
निर्जन घाटी में गूंजी है जब-जब भी बंसी की लहरी।
दिल प्रांगण में उत्सव सा तेरी पायल की झनकारो में।
तुम्हें जीतना अच्छा लगता कदम कदम पर दे धोखा।
फिर भी साथ निभाया हमने खुश रहकर सब हारों में।
माना है प्यार आग का दरिया पार उतरना है मुश्किल।
सीख लिया अब हमने भी जीना इन दहके अंगारों में।