गीतिका (हिन्दी गज़ल)
गीतिका (हिन्दी गज़ल)
बस्तियों में लोग फिर से आने-जाने लग गए ।
जोर अपने बाजुओं का आजमाने लग गए ॥
बेईमानी छल -कपट मक्कारियों के दौर में,
आस्था -विश्वास के किस्से ठिकाने लग गए ।
गन्ध फूलों से यहाँ अब आ रही बारूद की ,
सिरफिरे फिर मौत के जंगल उगाने लग गए ।
एकता सद्भावना इन्सानियत को भूलकर,
अपने ही हाथों से अपना घर जलाने लग गए।
भूख कुण्ठा मुफलिसी की जंग के मैदान में,
जख्म भरने की कवायद में जमाने लग गए ।
जाति मजहब और भाषावाद का परचम लिए
वो सियासी चाल की मुहरें बिछाने लग गए ।
भाषणों से कर रहे बरसात सुख-समृद्धि की,
खोखले नारों से जनता को लुभाने लग गए ।
मुफलिसों के नौनिहालों का निवाला छीनकर,
कोठियों के लोग कुत्तों को खिलाने लग गए ।