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Uma Shankar Shukla

Tragedy

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Uma Shankar Shukla

Tragedy

गीतिका (हिन्दी गज़ल)

गीतिका (हिन्दी गज़ल)

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बस्तियों में लोग फिर से आने-जाने लग गए ।

जोर अपने बाजुओं का आजमाने लग गए ॥ 


बेईमानी छल -कपट मक्कारियों के दौर में,

आस्था -विश्वास के किस्से ठिकाने लग गए ।


गन्ध फूलों से यहाँ अब आ रही बारूद की ,

सिरफिरे फिर मौत के जंगल उगाने लग गए ।


एकता सद्भावना इन्सानियत को भूलकर,

अपने ही हाथों से अपना घर जलाने लग गए। 


भूख कुण्ठा मुफलिसी की जंग के मैदान में, 

जख्म भरने की कवायद में जमाने लग गए ।


जाति मजहब और भाषावाद का परचम लिए

वो सियासी चाल की मुहरें बिछाने लग गए ।


भाषणों से कर रहे बरसात सुख-समृद्धि की,

खोखले नारों से जनता को लुभाने लग गए ।


मुफलिसों के नौनिहालों का निवाला छीनकर,

कोठियों के लोग कुत्तों को खिलाने लग गए ।


  


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