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Dhirendra Panchal

Romance Tragedy

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Dhirendra Panchal

Romance Tragedy

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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थे मोहब्बत हम उनपर लुटाते रहे ।

वो हमें देखकर मुस्कुराते रहे ।


मैंने दुपट्टे से उनका जो सर ढक दिया ,

वो नासमझ हमको जाहिल बुलाते रहे ।


खिड़कियों से मिली आंधियों की भनक ,

हम दरवाज़े पर पर्दे लगाते रहे ।


खुदगर्जियाँ ही उसने कमाई बहुत ,

मेरी गज़लों से घर वो चलाते रहे ।


मोहब्बत नहीं तेरे बस की यहाँ 

कुछ अपने ही मुझको बताते रहे । 


सोचकर ये दिल में चुभन होती है ,

क्यों दौलत हम उनपर लुटाते रहे ।


अब समझे निवाले की थी बद्दुआ ,

रोटियां चूल्हे पर हम जलाते रहे ।



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