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Dhirendra Panchal

Romance Classics Inspirational

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Dhirendra Panchal

Romance Classics Inspirational

तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने

तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने

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जब यह जगत अँधियार में डूबा हुआ था 
जैसे पाँव के निचे कोई कांटा चुभा था 
तब पागलों को पायलों में बांधकर 
सो सकी न रात भर तू जागकर
स्त्रियों को प्रेम का दर्पण बताने ।
तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने ।

जिन मंदिरों में हैं तुम्हारी मूर्तियां
फिर बेड़ियों में क्यों तड़पती देवियां
ये शक्ल पे जो खून के निशान हैं
कुछ और नहीं पौरुष के गहरे दान हैं
वह मदारी बन चला तुमको नचाने ?
तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने ।

नहीं,मांगटिका में नहीं किस्मत दबानी
हे देवियों तुम फोड़ दो सिंदूरदानी
बांसुरी से वासुकी को बाँधने ?
तुम चली थी पत्थरों को साधने ?
इस अल्पना के छोड़ दो करने बहाने ।
तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने ।

इस वहम से लड़ सको मुश्किल यहाँ है
कह काम को वो प्रेम करता छल यहाँ है
तुम मिटा दो इस महावर पाँव के सिंदूर को 
तुम दिखा दो भाल का यह तेज उस मगरूर को 
क्यों चली थी प्रेम को निश्छल निभाने ?
तुम चली थी प्रेम दुनिया को दिखाने ।

~ धीरेन्द्र पांचाल


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