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Dhirendra Panchal

Romance

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Dhirendra Panchal

Romance

परिणय

परिणय

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संभव हो गर मिल जाएँ जब हम दोनों एक रोज ।

कुछ लोगों की नाकामी पर करेंगे प्रीति भोज ।


उनकी पीड़ा का मिलकर मिष्ठान बनाएंगे ।

बारी बारी  उन सबको जलपान कराएँगे ।

जो ईर्ष्या रखते थे उनको हम लायेंगे खोज ।

कुछ लोगों की नाकामी पर करेंगे प्रीति भोज ।


अपने परिणय से उनको अवगत करवाएंगे ।

गर लज्जित हो जाएँ वो भूमिगत हो जायेंगे ।

मेरी इस लक्ष्मी को जो कहते थे घर का बोझ ।

कुछ लोगों की नाकामी पर करेंगे प्रीति भोज ।


~ धीरेन्द्र पांचाल







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