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Dhirendra Panchal

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Dhirendra Panchal

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भूसा के खाय गढ़े लंका सोनार

भूसा के खाय गढ़े लंका सोनार

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नाली खड़ंजा क दम्भ देखा मंशा क
नस्ता में खाय जालें कपिला आहार
अंड बंड फंड क दोहाई देले मुखिया जी 
बाँट लेलें मिल कुल्हि सेतीहा अनार

बी डी ओ बलाक लोग केतना चलाक लोग
डी एम भी थाम लेनs रुपिया हजार 
सबही क शान घटे रुपिया क मान घटे
कहेलें कि डालर देखा पहुँचा पहाड़ 

राम कथावाचक क हाल जस याचक क
गइयन क तस्कर क लश्कर फरार
थाना कचहरी में रुपिया मसहरी में
राख करे बाबू दरोगा करार

माइक से भाषण में शासन परशासन में 
शोषण आ पोषण पे होला बिचार
बर्तन में भात नाही कीर्तन सोहात नाही
ठेहुना भर पानी में डूबल दुआर

बड़का घराना क बात ह सलाना क
एक दू कसाई रोज खांचे दुआर
सबरी क प्रेम देख छलकेला आँख जहाँ
कान काट पड़वा बेचालें बाजार

गांव के चुनाव क बात होला भाव क 
गिरे न चच्चा हम लड़िका तोहार
साड़न के हाता से जनधन खाता ले
सबही के बाँट देब राशन अपार 

माला पेन्ही ताल ठोंके गदहन के नाल ठोंके
पूछला पे आई जाला उनके बोखार
बछरुन के आह नाही इनका तबाह करे
भूसा के खाय गढ़े लंका सोनार

~ धीरेन्द्र पांचाल


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