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Dhirendra Panchal

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Dhirendra Panchal

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पढ़ल लिखल

पढ़ल लिखल

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पढ़ल लिखल के हाथन में बारूद ह 
हम अनपढ़ हमरे हाथे अमरुद ह 

उनकर गिनती बाग उजाड़े वालन में 
हमार हउवे गाय गँवार आ ग्वालन में
आग लगल ह मड़ई अउरी माड़ो में 
लूह चलत ह देखा ईहवां जाड़ो में 
ओनके मन में बइठल देखली जुद्ध ह 
हम अनपढ़ हमरे हाथे अमरुद ह

राम के जे गरियावे ओकर संसद में सत्कार
राम के पूजे वालन के हव रोटी क दरकार
हरदी मटमंगरा क ओनके रोज बोलावा ह
परछन खातिर सास दुआरे कइले दावा ह 
करधनिया नाता में भीड़ अनकूत ह
हम अनपढ़ हमरे हाथे अमरुद ह

मानस के पाखण्ड बतावे वालन क बरियारी
ओनही माथे मऊर बन्हाला ओनही क रंगदारी
राम के तू गरियावा चाहे पूजा दुन्नो जून 
खुद के रावण समझेला त भेदा आपन मूड़
मरचा ओइछा हमहू देखी, डोड़हा ह की भूत ह 
हम अनपढ़ हमरे हाथे अमरुद ह

~ धीरेन्द्र पांचाल


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