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Dhirendra Panchal

Romance Classics Inspirational

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Dhirendra Panchal

Romance Classics Inspirational

माफ हमको कीजिये

माफ हमको कीजिये

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इस विलासी भावना से 
        साफ दिल को कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है 
        तो माफ हमको कीजिये ।

होटलों के फर्श तक हम बेहयाई लाँघकर ।
बण्डलों पर नोट के ईमान अपने फांदकर ।
जा सके न देह के व्यापार को देने दिशा ।
मासूका की गोद में कैसे बिताते यूँ निशा ?

है बुजुर्गों का अदब 
        ना राख हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है 
        तो माफ हमको कीजिये ।

वासना की कामना में देह की दीवार को ।
ढाहते कैसे भला हम प्रेम की मिनार को ?
सिसकियाँ आती हैं देखी पुष्प के किरदार से ।
कब कहाँ कैसे बचोगे कंटकों के वार से ?

हम समंदर ठीक हैं 
        ना भाप हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है 
        तो माफ हमको कीजिये ।

यह उदासी प्रेम की निष्काम सी सम्भावना है ।
जायसी रसखान मीरा की सतत उपासना है ।
इस रइसी में न कोई डूबने की कामना ।
हम उपासक राम के है प्रेम अपनी साधना ।

हम समय के ताप पर 
        ना खाक हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है 
        तो माफ हमको कीजिये ।

~ धीरेन्द्र पांचाल


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