माफ हमको कीजिये
माफ हमको कीजिये
इस विलासी भावना से
साफ दिल को कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है
तो माफ हमको कीजिये ।
होटलों के फर्श तक हम बेहयाई लाँघकर ।
बण्डलों पर नोट के ईमान अपने फांदकर ।
जा सके न देह के व्यापार को देने दिशा ।
मासूका की गोद में कैसे बिताते यूँ निशा ?
है बुजुर्गों का अदब
ना राख हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है
तो माफ हमको कीजिये ।
वासना की कामना में देह की दीवार को ।
ढाहते कैसे भला हम प्रेम की मिनार को ?
सिसकियाँ आती हैं देखी पुष्प के किरदार से ।
कब कहाँ कैसे बचोगे कंटकों के वार से ?
हम समंदर ठीक हैं
ना भाप हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है
तो माफ हमको कीजिये ।
यह उदासी प्रेम की निष्काम सी सम्भावना है ।
जायसी रसखान मीरा की सतत उपासना है ।
इस रइसी में न कोई डूबने की कामना ।
हम उपासक राम के है प्रेम अपनी साधना ।
हम समय के ताप पर
ना खाक हमको कीजिये ।
प्रेम अगर सम्भोग है
तो माफ हमको कीजिये ।
~ धीरेन्द्र पांचाल

