ग़ज़ल
ग़ज़ल
तान छेड़े श्याम सुंदर जब नदी के सामने
है मगन राधा दीवानी बांसुरी के सामने
ढल रही है रात धीरे बात कुछ होती नहीं
अनवरत चलता रहा क्रम चांदनी के सामने
है अहम में बांसुरी अब श्याम के अधरों सजी
टूट न जाये ये सरगम बन्दगी के सामने
चल हवा तू धीर धर के ध्यान ना टूटे अभी
श्याम मनमोहित हुए हैं रागिनी के सामने
जल की कलकल थम गई है चाँद तारे खो गए
कुछ न बोली अब धरा भी नन्दनी के सामने
पुष्प अर्पित कर रहे हैं सब गगन के देवता
हो रहा अद्भुत मिलन ये पंखुरी के सामने
वासना से दूर है ये प्रेम का पावन मिलन
इक हृदय दर्पण बना है मोहिनी के सामने।