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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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मुसर्रत से जीने की हसरत बड़ी है,

मगर फासले पर खड़ी जिंदगी है।


उम्मीदों की शमा जलाई है लेकिन,

मुकद्दर के आगे किसकी चली है।


जिसे चाहकर हमने माना हमेशा,

उसी की खुशी में हमारी खुशी है।


रही हमपे उनके करम की नवाजिश,

सदा जान फिर भी हमारी जली है।


चला वार ऐसा रंजो अलम का,

लगा हर कदम पर तमन्ना मरी है।


हमें छोड़ कर जाने वाले बता अब,

हमारी मोहब्बत में क्या कुछ कमी है।


बढ़ा जब भी मासूम वफा का तकाजा,

हवा तो मुखालिफ़ हमेशा चली है।


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