ग़ज़ल
ग़ज़ल
हुआ यार मेरा बड़ा सख्त अब तो,
बदलने का कोई नहीं वक्त अब तो।
गुजरती रही है जहाँ तंग हस्ती,
मेरा गम बढ़ा के रहे मस्त अब तो।
कहाँ तक जिया जाये तन्हा बताओ,
मिटा दो ये जज्बा ये बे रब्त अब तो।
समझते रहे हम जिसे अपना हमदम,
रहा खार सीने में पयवस्त अब तो।
भटकते रहे हम उम्मिदों में अब तक,
रही आरजु की सदा गश्त अब तो।
निभाने लगे हैं वो अब फासले को,
घटा कम है मासूम बढ़ा रब्त अब तो।।