क्या कहुं बोलो,
क्या कहुं बोलो,
बदली है नजर तेरी क्या कहुं बोलो,
बिगडी है सहर मेरी क्या कहुं बोलो।
आखें तो बिछा दी हैं मंजर के जमेलों में,
ओर आने मे करो देरी क्या कहुं बोलो।
चाहत की भरी आखे रातों को जगाती हैं,
अय जाने जीगर मेरी क्या कहुं बोलो।
सीने से लिपटने का अरमान अधुरा है,
क्युं बैठे हो बने बैरी क्या कहुं बोलो।
हसरत से भरी राहैं मासूम लगे सुनी,
तनहा है ये डगर फैरी क्या कहुं बोलो।