ग़ज़ल
ग़ज़ल
रुखसार पर ये गेसु डाले नकाब जैसे,
लगता ये बदलीयों मे हंसता शबाब जैसे।
किस्मत से जीसने पाइ ये हुस्न ये जवानी,
महेका हुवा लगे है ये महेका गुलाब जैसे ।
चारों तरफ उजाला फैला दिया है जीसने,
छाया हुवा नजर मे लगे युं माहताब जैसे।
पेशे नजर खडे हैं जो सुरत दबाये अपनी,
पाये कहां से कोइ धडकन मे ताब जैसे।
महेका हुवा बदन है ये रंगो भरा चमन सा,
डालो जीधर निगाहें चढती शराब जैसे।
मरकज बने हुवे हैं वो हुस्नो-अदा दीखाके,
मन को लुभा रहा है इक आफताब जैसे।
नजरें मिला के मासूम वो मुस्कुरा रहे हैं,
तकमिल हो गये हों सब अपने ख्वाब जैसे।