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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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जान मेरी निकालता है अतीत

तीर यादों के मारता है अतीत


जब से बोला है भूलने दे उसे

जाने क्यों तब से हँस रहा है अतीत


वक़्त पर क्यों नहीं किया इज़हार

अब तलक मुझको सालता है अतीत


सीख लेता नहीं कोई इससे

कितने ज़ोरों से चीखता है अतीत


जाने की कह के खुद को दोहराता

क्यों भला थूक चाटता है अतीत



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