हे सोना...
हे सोना...
हे सोना...
जीवन का स्पंदन तुम,
हृदय में बहते रक्तकण तुम।
तुम ही मेरा प्रेम-प्रीत,
उत्साह-उमंग का सागर तुम।
तुम ही मेरे चेहरे की चमक,
लबों पर फैली मुस्कान तुम।
मन की गहराई में तुम,
स्वांसों की आवा-जाही में तुम।
दिल का हर अरमान तुम,
मेरे शब्दों की पहचान तुम।
वीरानों में खिले मनभावन गुलाब तुम,
खुली आँखों से दिखते ख्वाब तुम।
तप्त हृदय से निकलती जल की धारा तुम,
मेरी खुशियों की बसन्त-बहारा तुम।
हँसते हँसाते सदा साथ रहना...
तुम ही मेरा जीवन-संसार,
मेरे नयनों के प्रीतम-प्यारा तुम।