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Vikrant Kumar

Abstract

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Vikrant Kumar

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उसने मांगी थी खुशी

उसने मांगी थी खुशी

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उसने मांगी थी खुशी,

मैंने गम हजार दिए।


खुशियों से भरनी थी राहें उसकी,

गम ही गम बस तार दिए।

उसने मांगी थी खुशी...


देखे थे जो सपने,

सबमें दर्द बेशुमार दिए।

उसने मांगी थी खुशी...


कभी था जो नायक उसका,

बन खलनायक जुल्म बेशुमार किये।

उसने मांगी थी खुशी...


देवता समझा था मुझे उसने,

जिद्द ने सब बर्बाद किए।

उसने मांगी थी खुशी...


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