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Vikrant Kumar

Romance

4.5  

Vikrant Kumar

Romance

तुम प्रिय

तुम प्रिय

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342



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जेठ की तपती दुपहरी में

बरगद की ठंडी छांव

हो तुम प्रिय


जमाने से प्यासी धरती पे

झूमकर बरसता सावन

हो तुम प्रिय।

 

दर दर भटकते मुसाफिर

के अरमानों की मंजिल

हो तुम प्रिय।


मन के सुनहरे सपनों की

साकार सी मूरत

हो तुम प्रिय।


सांसो की बहती धारा में

जीवन की तरंग

हो तुम प्रिय।


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