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Juhi Grover

Abstract Romance

4  

Juhi Grover

Abstract Romance

ध्वनि प्रतिध्वनि की गूँज

ध्वनि प्रतिध्वनि की गूँज

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वहाँ ध्वनि प्रतिध्वनि की गूँज,

कण कण में विराजमान थी।

गूँज रहा था लहरों का संगीत,

और प्रतिध्वनि में थी मधुरता।


चाहतों का बहता था समन्दर,

और प्रतिध्वनि में थी शीतलता।

वो तेरी मुस्कुराहट का अंदाज़,

और मन की पावन चंचलता।


सांझ का रूप दिखलाता नभ,

और उसके रंगों की सुन्दरता।

मन भावन था प्रकृति का शोर,

शान्त हुई थी मन की विह्वलता।


तेरी न मौजूदगी में भी ध्वनि ही,

तेरी चाहत ही महसूस हुई थी।

वहाँ ध्वनि प्रतिध्वनि की गूँज तो

कण कण में ही विराजमान थी


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