अधूरी कल्पना
अधूरी कल्पना
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उसको बुनता रहा हूँ सदा गीत में
शब्द से जो बनी है मेरी अल्पना
पा सका न तुझे तो न पूरा हुआ
मैं अधूरा अधूरी है मेरी कल्पना
प्यार दुनिया मे दुनिया है प्यार में
प्यार ही तो यथावत है संसार में
प्यार में हार हो तो शौक़ से हारिये
जीत है यह छुपी प्यार की हार में
प्यार सुन्दर है शिव अक्षर भी है
प्यार के ही लिए सारा जग है बना
पा सका न तुझे तो न पूरा हुआ
मैं अधूरा अधूरी है मेरी कल्पना
प्यार का पथ है तलवार की धार पर
ये समन्दर है इसको तैर कर पार कर
भट्टी में जो लगा उस लोह खण्ड की तरह
प्यार करना है तो खुद को तैयार कर
प्यार की जब मिलेगी मन्जिल तुझे
प्यार के पथ पर रस्ता तू खुद ही बना।