मलंगा
मलंगा
रे जोगी किस ओर तू चला,
धर के ऐसा भेस तू क्या खोजने चला,।।
तन पर लपेटे सतरंगी चोला,
किस रंगरेज ने रंगा ये तेरा चोला,
तेरे भीतर कई सवाल हैं छुपे,
सवाल तेरे हैं इस जग से परे,।।
रे जोगी किस ओर तू चला,
धर के ऐसा भेस तू क्या खोजने चला,।।
राहों में कांटे है बिखरे,
इन दर्द भरी राहों में तुम तन्हा क्यों निकले,
घाव कहीं गहरे ना मिल जाए,
चोट कहीं ऐसी ना लगे जिसका मरहम ना मिल पाए,।।
रे जोगी किस ओर तू चला,
धर के ऐसा भेस तू क्या खोजने चला,।।
मुझे भी अपने साथ तू ले चल,
तुझ बिन ना रह पाऊंगी एक भी पल,
तेरी संगिनी मै तेरी साथी हूं,
तू जले जो बन कर दीप मै तेरी बाती हूं,।।
रे जोगी किस ओर तू चला,
धर के ऐसा भेस तू क्या खोजने चला,।।
तेरी खोज है निराली,
तेरे नाम लिख दी मैंने अपनी जिन्दगानी,
दिल का हाल अब सारा बयां करना है,
विरह आग में आधा आधा हम दोनों को जलना है,।।