ग़ज़ल
ग़ज़ल
मेरा भी तो मुकम्मल आशियाँ था,
जमीन थोड़ी और पूरा आसमाँ था।१
कभी तो कर के वादा भी निभाते,
यही तो आस तुमसे हमनवाँ था।२
अगर मिलता न तू हमदम समझ लो,
मेरा ये दिल भी एक खाली मकान था।३
सियासी रंजिशे बढ़ने लगी अब,
चला ऐसा चुनावी कारवाँ था।४
निकलकर अब मेरे दिल से चला जा,
कभी बनकर रहा तू राजदान था।५