रोक न पाओगे
रोक न पाओगे
मुझे न समझो गार्गी
जिसका मुँह तुम बंद किया था
उसकी सच्ची और अच्छी सोच पर
तुम्हारा बुरा विचार था।
मुझे सीता माँ भी न समझो
जिसकी चलने ी पथ पर
मनाही की लकीर खींचते हो
और अग्नि परीा के सामने
लाते हो
उसकी शर्म -हया को
तहस- नहस कर।
मैं सूर्पनखा भी नहीं हूँ
प्यार का भूखा
नहीं हूँ
प्यार पाने के लिए भी
विनती नहीं करुँगी .
द्रोपदी भी नहीं हूँ
जिसे भीड़ के सामने
तुमने नंगा करने का प्रयास किया था
अपनी बुरी मंसा को सफल करने के लिए
मैं मीरा भी नहीं हूँ
जिसे मारना चाहा था
प्याला में विष देकर।
मैं फूलन भी नहीं हूँ
जेसिका लाल भी नहीं
बड़ी बहन दामिनी भी नहीं
मैं दौड़ती पहाड़ी नदी हूँ
तनकर खड़ी ऊँची सखुआ हूँ
सुर्ख लाल पलाश हूँ।
मुझे न रोको
अपनी बुरी मानसिकता की बाधा से
अन्धविश्वास से
नियम-धर्म की सिकंजे से।
मैं तो पढ़ूंगी
आगे बढ़ूंगी ही
घने अंधकार को चीरकर
कॉलेज जाउंगी ही।
(झारखण्ड के पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड अंतर्गत जुड़ी गाँव के चार सड़क का नाम वहाँ के चार लड़कियों के नाम से हुआ है .जिस गाँव की लड़कियां कक्षा आठ तक ही पढ़कर छोड़ देती है ,वहां ये चार लड़कियां कॉलेज में पढ़ रही है .इन लड़कियों को सम्मानित करने के उद्देश्य से पूर्वी सिंहभूम के उपयुक्त ने इन लड़कियों के नाम से गाँव की सड़क का नामकरण करने का फैसला किया .सम्मानित लड़कियों का नाम इस तरह है .
1.सुनीता भट्टाचार्य
2.वैसाखी गोपी
3.मणिमाला सिकदर
4.सुनीता गोपी
यह कविता भी इन चार लड़कियों के नाम समर्पित है .)
