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Deependra Deepak

Tragedy

4.7  

Deependra Deepak

Tragedy

भूखा किसान

भूखा किसान

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रोटी की सौंधी खुशबू से,

जो सबकी थाली महकाता है

वो किसान अक्सर देखा है,

खुद भूखा रह जाता है

 

इतने वर्षों के बाद भी उसकी

फसल है क्यूँ भगवान भरोसे

कमल को इसके लिए दुआ दें

या पंजे को जी भर कोसे


उसके जीवन-मरण के मुद्दों पर

चर्चा होती उन कमरों मे

बिसलेरी की बोतल के संग

जहां पे बंटते गरम समोसे


हर मीटिंग मे तय हो जाती

अगली मीटिंग की तारीख

इससे ज्यादा इन नेताओं को

कुछ नहीं बुझाता है

रोटी की सौंधी खुशबू से

 

 हमने माना तुम धन-दौलत का

अंबार लगा लोगे

पर क्या रोटी के बदले में

नोट करारे खा लोगे


अगर वक्त रहते नहीं चेते,

तो खुद ही ये बतलाओ तुम

आने वाली नस्लों से तुम

कैसे नज़र मिला लोगे


अभी महज ये एक सपना है

फिर भी बड़ा भयावक है

बन जाए न कहीं हकीकत

दिल मेरा घबराता है

रोटी की सौंधी खुशबू से..।


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