STORYMIRROR

Arvind Khanabadosh

Tragedy

4  

Arvind Khanabadosh

Tragedy

हम लाशें है

हम लाशें है

1 min
441

हम रोज़ किसी का जलता हुआ

घर देखते है

लौटकर अपने घर आते है

और भूल जाते है।

हर रोज़ हमारे कान में किसी की

चींखें पड़ती है

हम इयरफोन लगाए म्यूज़िक में

खो जाते है।


रोड पर पड़े उस घायल ने

हमें भी पुकारा था

पर हमें फुरसत कहाँ, 

सो आगे बढ़ जाते है।

उस मासूम बच्चे ने हमसे भी

कुछ माँगा था

फिर बाद में उसने छीनना

शुरू किया है।


दिखता हमे सबकुछ है,

पर शायद

हम देखना ही नहीं चाहते,

सुनते हुए भी बेहरे बनते है,

दरसल हम आदि हो चुके है

इन हालात के,

हमे फर्क ही नहीं पड़ता।


हम लाशों के ढेर पर बैठे हुए,

किसी फ़िल्म के आलोचक या

किसी खेल के दर्शक बने हुए हैं।

हम भीड़ के उस हिस्से की तरह है

जिसे कोई मतलब नहीं इंसानियत से

वो सिर्फ अपने आकाओं का

हुक्मरान है।


हमें सुबह चाय के साथ अखबार में

थोड़ा कत्लेआम भी दिया जाता है

और दिन भर टीवी हमें सिखाए

रखता है

जिससे हमारी आदत बनी रहे।

असल में हम सब मर चुके है

ये जो घूम रहे हैं, ये लाशें है

जो घर से काम को जाती है

और घर लौटकर सो जाती है ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy