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Arvind Khanabadosh

Abstract

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Arvind Khanabadosh

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बचपन का खिलौना

बचपन का खिलौना

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बचपन का एक खिलौना बन जाऊँ

किसी रोते हुए बच्चेको हँसा पाऊँ

अब इतनी मासूमियत कहा से लाऊं। 


सबके सामने अपनी बत्तीसी दिखाऊँ

जीभ दिखाके टेढ़े-मेढ़े  मुँह बनाऊँ 

इतनी प्यारी बदतम्मज़ी कहा से लाऊं।


एक रोज़ में भी किसी से रूठ जाऊँ

और बिना बात खुद ही मान जाऊँ

अब इतना बडा दिल कहा से लाऊँ।


किसी अंजान को गले से लगा पाऊँ 

और यूँ ही बेकार सी बातें करे जाऊँ

इतनी फुरसत अब कहाँ से लाऊं।


जितना आगे जाऊँ, जीना भूलता जाऊँ 

ज़िन्दगी छोड़ो, सूकून से मर भी न पाऊँ

सोचता हूं वापस बचपने में लौट जाऊँ।


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