तुच्छ से बेटी बचाओ
तुच्छ से बेटी बचाओ
घिनौना ये सोच है,
घिनौने ये कुछ तुच्छ नामर्द लोग।
"बेटी-बचाओ" नारे का क्या हुआ ?
क्या तुम इतने जल्दी भूल गए ?
बेटियों ने जीता है पुरस्कार,
देश के नाम की हुई जय जयकार।
ओ! तुच्छ, है तुम पर मुझे धिक्कार,
नज़ाने कब रुकेगा ये बलात्कार।
बयान-बाज़ी हमने देखी बहुत,
क्या सच में कुछ कर के दिखाओगे ?
कब उन तुच्छ को सबक सिखाओगे ?
क्या तुम सच में बेटी-बचाओगे ?
चीरहरण से भी भयावह स्थिति है अब,
नींद से तुम जागोगे कब ?
तुम इस रेप पर लगाम, लगाआगे कब ?
इन दरिंदों को फ़ांसी पर, लटकाओगे कब ?
