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Pradyumn Kumar

Tragedy

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Pradyumn Kumar

Tragedy

तुच्छ से बेटी बचाओ

तुच्छ से बेटी बचाओ

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घिनौना ये सोच है,

घिनौने ये कुछ तुच्छ नामर्द लोग।

"बेटी-बचाओ" नारे का क्या हुआ ?

क्या तुम इतने जल्दी भूल गए ?


बेटियों ने जीता है पुरस्कार,

देश के नाम की हुई जय जयकार।

ओ! तुच्छ, है तुम पर मुझे धिक्कार,

नज़ाने कब रुकेगा ये बलात्कार।


बयान-बाज़ी हमने देखी बहुत,

क्या सच में कुछ कर के दिखाओगे ?

कब उन तुच्छ को सबक सिखाओगे ?

क्या तुम सच में बेटी-बचाओगे ?


चीरहरण से भी भयावह स्थिति है अब,

नींद से तुम जागोगे कब ?

तुम इस रेप पर लगाम, लगाआगे कब ?

इन दरिंदों को फ़ांसी पर, लटकाओगे कब ?


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