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कवि धरम सिंह मालवीय

Romance

4  

कवि धरम सिंह मालवीय

Romance

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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एक हवा का झोंका लगा था अभी तेरी चूनर भी सर से सरकने लगी

मैंने चुपके से छत पर बुलाया तुझे तेरी पायल निगोड़ी छनकने लगी


दिल ने चाहा था हाथ थाम कर तेरा मैं डगर पर यूं ही चलता रहूँ

हाथ तेरा जो थामा था मेरे हाथ में तेरी चूड़ी खन खन खनकने लगी


आओ देखो चमकते हैं चाँद तारे सभी कितने हसीं लगते है सभी

मैं जब तक दिखाता चाँद तारे उसे बिंदिया तारों के जैसे चमचम चमकने लगी 


जैसे तारों के संग आसमां मिल रहा आओ ऐसे ही मिल जाये हम 

सोचा आगोश में आज भर लूँ तुझे मेरी आँख अब क्यों फड़कने लगी


तेरा तन हैं कोमल कली की तरह मन हैं चंचल मछली की तरह

दोनों हाथों से मैंने जो थामा तुझे तेरी कमर सज़र सी लचकने लगी


देखा जबसे तुझे दिल दीवाना हुआ लगता जैसा जगत से बेगाना हुआ

हुस्न और इश्क का ये मुज़स्समा देखकर मेरी नजरे क्यों अब भटकने लगी


प्यार में मैंने तुझको माना खुदा प्यार ही कि मैंने माँगी दुआ

तेरी इबादत जो कि नाम तेरा लिया तेरी रहमतें मुझ पर बरसने लगीं


 तेरे मिलने की कोई भी हसरत नहीं तू मिले तो किसी की जरूरत नहीं

 ग़ज़ल में तेरा कर के बयान हमनशीं शायरी अब धरम की चमकने लगी



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