ग़ज़ल : हवा खूब है चारों ओर
ग़ज़ल : हवा खूब है चारों ओर
हवा खूब है चारों ओर,
बयार का नाम नहीं ...
अंधड़ उठते हैं लेकिन,
ग़ुबार का नाम नहीं ...
नशा फिर भी होता पर,
ख़ुमार का नाम नहीं ...
दफ़्न कुछ तो है मगर,
मज़ार का नाम नहीं ...
एक हो घर ऐसा जहाँ,
दीवार का नाम नहीं ...
इश्क़ का मर्ज़ रूठा है,
बुख़ार का नाम नहीं ...
आग बरसती है अब्र से,
फुहार का नाम नहीं ...
बाज़ी अपीलों की यहाँ,
गुहार का नाम नहीं ...
दर्द भी है दवा भी है,
बीमार का नाम नहीं ...
इश्क़ जुनूँ से पस्त है,
क़रार का नाम नहीं ...
जिस्म घूरते जिस्म को,
प्यार का नाम नहीं ...
क्यों मेरा नाम पूछते हो,
'अवार' का नाम नहीं ...