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प्रणव अभ्यंकर 'आवारा'

Others

2.5  

प्रणव अभ्यंकर 'आवारा'

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नज़्म : नींद

नज़्म : नींद

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नींद,

यूँ मुझे सवाल पूछने की

आदत नहीं,


मगर तू बड़ी अ

मूर्त छबी है तो

अक्सर कुछ बातें हैं तेरी

जिनसे मैं मुख्तलिफ

होना चाहता हूँ


तू कौन है, क्या है.

तू कहाँ है ?


पता चलता है

जब तू नहीं आती

मगर जब तू आँखों में हो

कुछ सूझता नहीं


तू नहीं होती तब

तेरी याद होती है

एहसास होता है


तू आती कहाँ से है

और जाती कहाँ ?

तू दिखने में बहुत

हसीं होगी ना ?


तेरा पेशा क्या है

क्यों की मुझे तू

भ्रामक संमोहक आदी

बहुत कुछ लगती है


तू एक बेवफा सनम की तरह

जाती है ,तेरे जाने के बाद

कुछ वक़्त तेरे चीथड़े

मेरे बदन से लिपटे रहते हैं


तू धर्मनिरपेक्ष,

सेक्युलर है ? है न ?

तू ज़ात - पात

धर्म -मज़हब

उम्र - भाषा

देश - विदेश

हद - सरहद

जगह - वक़्त जैसे

बंधनों से परे

एक इंटरस्टेलर आयाम

में रहती है शायद


लेकिन सबसे बड़ा सवाल है

के तू इतनी निरपेक्ष

होने के बावजूद ,

सबकी ज़बान समझती है


आखिर तेरी भाषा क्या है

जिसके सहारे तू

हम सबसे संवाद

करती है


आखिर तुझे कैसे पता चलता है

के मुझे मैथ्स क्लास में बहुत बोर होता है

के गुप्ता अंकल को शादी के मन्त्र सुनने में पकता है

के रोहिणी अपनी एथलेटिक्स ट्रेनिंग कर के थक चुकी है

के रोहन के दादा पर अब बी.पी. की गोली

असर होने का वक़्त आ गया ह?


के उस शहीद की बेवा को तू अभी नहीं भाएगी

के शरद अभी इश्क़ में है?

के दीप्ति के बोर्ड एक्साम सिरहाने हैं

के निरंजन नफरतों का शिकार है

के निशा नशे में गिरफ़्तार है

के जॉर्ज के सीने में बरसो से दबा लावा अभी मुहाने पर है

वो पिघलने तक एक छोटा सा इंतज़ार

के असलम अब भी पूरी तरह समझ नहीं पाया के

ख्वाब और सच्चाई में फ़र्क़ क्या है


ये और ऐसे कितने ही

सवाल करते समझते तू आ धमकी है

मेरी पलकों की कोर पर बैठे बैठे तूने मेरे

ज़ेहन -ओ -दिल -ओ -दिमाग पर कैसे

पंजे कस लिए हैं किसी काली बिल्ली की तरह


मैं इन सवालों को लेकर

तेरे ही आगोश में जा रहा हूँ

जहाँ फिर एक ऐसे ही किरदार

'ख्वाब' से मेरी मुलाक़ात होगी

जो न देखा न सुना न छुआ न जाना


नींद,

तू कौन है ?

क्या है ?

तू कहाँ है ?


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