STORYMIRROR

Sonam Kewat

Tragedy

2  

Sonam Kewat

Tragedy

गावों की यादें

गावों की यादें

1 min
353

बचपन पूरा शहर में बीत गया

पर सब कुछ धुंधला धुंधला सा है,

गाँव जाना तो हमारा सिर्फ

गर्मियों की छुट्टियों में होता था

पर बहुत सारी यादों का कारवां है,

जो आज भी बिलकुल ताजा सा है।


गांव में वह कच्चे मकान और

बरगद की छांव में ढ़लती शाम,

बस और क्या कहना,

शाम होते ही लुका छुप्पी खेलते,

रात होते ही भूतों की कहानियां सुनते

दादी की कहानियों से सब सो जाते थे

और मुर्गों की आवाज से उठाये जाते थे,

चिड़ियों की भोर में मधुर चहचहाहट

और गाय भैंस का खेतों में चरते रहना,

किसानों का दिन भर मेहनत करना

जाने क्या क्या देखने को मिलता था,

इतनी सारी जिंदगानी एक साथ

बस और क्या कहना।


अरसे बाद मैं फिर से गांव गया था

तकनीक गांव तक भी जा पहुंची है

अब कच्चे नहीं पक्के मकान बनने लगे हैं,

शहरों की तरह नये पकवान बनने लगे हैं,

पगडंडियों ने सड़कों का रूप लिया है

वहाँ भी लोगों ने तरक्की कर लिया है,

अब किसान उस तरह घूमा नहीं करते

शाम को बच्चे खेला नहीं करते,

दादी के बिना कहानियाँ भी नहीं रहीं

मुर्गों की एक या दो बांग सुनाई देती है,

पहले जैसा वहाँ अब कुछ भी नहीं है,

बस एक बरगद का बूढ़ा पेड़ वही है

अब इससे ज्यादा क्या कहना।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy