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डॉ वन्दना राजरवि

Drama

4.0  

डॉ वन्दना राजरवि

Drama

एक्सट्रीम छोर

एक्सट्रीम छोर

1 min
313


कभी-कभी

कविता का गला रूंध जाता है

उसके हलक में अटक जाते हैं

बिन बुलाये जज़्बात।


वो साँस नहीं ले पाती

उसे लगता है कि

उसका दम निकल जाएगा

उसका दम निकलना भी

किसी नज़्म से कम तो नहीं।


जिंदगी की गणित बहुत उलझाऊ है

कितने सारे कॉन्बिनेशन परमुटेशन

तुम लोगों की चालाकियाँ

देखते रह जाओगे।


कहना भी चाहोगे तो

कुछ कह ना पाओगे

तब फ़कत तुम चुनना बस

उसके साथ सफ़र से उतर जाना।


भाषा में मौन को सोख कर

कुछ मिनट बतिया लेना खुद से ही

तुम आज कुछ जरा सा परेशाँ हुए

तुमने कुछ घूंट चढ़ा लिए।


हाँ तुमको ऐतराज होगा इसे

'कुछ ज़रा' सा कहने पर

पर मेरी मानो

तुम कुछ ज़िंदगी

चढ़ा लो मेरे दोस्त।


शायद कुछ कम हो जाए

शिकायतें तुम्हारी

क्योंकि जिंदगी झूलती रहती है।

एक्सट्रीम छोरों पर

तुम इसे -१ और +१ सिग्मा के बीच

खोजना छोड़ दो।।


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