सैनिक के इंद्रधनुष के रंग
सैनिक के इंद्रधनुष के रंग
उसके बदन का तापमान
समायोजित नहीं होता
ऐसी कूलर पंखे से।
वह सरहद की मिट्टी से
गर्मी ठंडी सब कुछ लेता
मिट्टी ही उसका घर
मिट्टी ही कंबल
मिट्टी ही चादर।
एक फोन से ही
उसके हफ्तों कट जाते
एक खत में वह महसूस कर लेता
मां के हाथ, पिता के पैर
बहन की शैतानी, भाई का बचपना
और ना जाने कितना कुछ।
उसने भी पढ़ा है
चाहा है हम सब की तरह
कई रंगों को
पर उसकी आंखों के प्रिज्म से
गुजरकर रोशनी
विबग्योर पैटर्न में नहीं दिखती
केवल, तीन रंगों में बंटती है।
हम सब आजादी खोजते हैं
वो हमें आजाद रखता है,
तिरंगा उसे, और वो
तिरंगे को आबाद रखता है।