सफेद मुस्कान
सफेद मुस्कान
देखना मैं सिटकनियाँ जड़ी ही रहने दूँगी,
उदास खिड़की आवाज देगी जब मुझको।
दो चार परदे और टाँग दूँगी,
लकड़ी के पल्ले के कानों पर,
उन्हें बहरा करने को।
मेरी सफेद मुस्कान,
नंगी आँखों से ना देखना तुम।
तुम्हें मुझ में तुम दिखने लग जाओगे,
इसलिए अपनी काली पल्कों तले,
भूरी पुतलियों को सलामत रखना।
मैं क्लचर से केवल,
बालों को नहीं समेटा करती,
उनमें गुलेट के रख देती हूँ,
माथे की सलवटों को भी।
कि वह मेरे होठों पर,
कोई स्याह लकीरें ना बना दे।
कि तुम फिर जो नोक भर,
मोहब्बत कर सकते हो मुझसे,
वो धुल जाएगी,
मेरे चेहरे पर जमे तेल के साथ।
मेरे कुर्ते के गले में बना,
यू कोई चाँद सा है,
तुम उसपे दुपट्टे की चादर,
बिछा कर सो जाना।
कि नज़रों से लोरियाँ गिरेंगी,
तुम्हारे गालों पर,
तुम बस जरा सी इमली चखना,
मैं पूरी पुड़िया सी,
बंध जाऊँगी तुम्हारी जेब में।
मैंने सिल दिया है,
तकिए के गिलाफ़ को,
कि नींदें आवारा होकर कहीं,
किसी पते पर गिर ना जाए,
लिफाफा बन कर।
और कबूतरों के गले,
एक बार फिर सूने रह जाए।।

