रोशनाई
रोशनाई
यह जो फूल है
महज़ फूल भर नहीं है
यह जादुई रोशनाई है
कि जब कभी तुम मुरझा जाओ
तो आड़ी तिरछी रेखाएँ खींचकर
बना सको कोई पेंटिंग बेतरतीब
उडे़ल पाओ उसमें अपने मन के रंग
ये जो हर रोज तुम झिल्लियों में
लपेटकर फेंक देते हो रोटी के टुकड़े,
चावल के दाने, क्या कभी तुम
सूखकर टूट कर,
फिर खिल सकोगे इनकी तरह ?
फिर अपनी पत्तियों को झाड़ कर,
अपने शरीर को तपाकर, भिगा कर,
दे सकोगे भोजन किसी भूखे शरीर को ?
यह जो फूल है
महज़ फूल भर नहीं है
यह वृत्तांत है संघर्ष का
कि अगली बार जब तुम टूटने की कगार पर हो
तुम अपने मानसून का इंतजार करना।।
