एक उदास सा पल
एक उदास सा पल
एक बार एक अवसर मिला था
एक उदास से पल से रूबरू होने का,
लगा था मुझ नागरिक को एक
सरकार की जरूरत है और वो कहीं और है।
लगा था धर्म पकड़ेगा मेरा दामन
मिलेगी मुक्ति उदासी से पर ऐसा हुआ नहीं,
और उसने पकड़ा दी मेरे हाथ एक नंगी
चमचमाती हुयी तलावर।
लगा था मिलेगा कोई हमसफ़र
इस उदास से पल से बाहर ले चलने के लिये
कोई मिला नहीं।
लगा था ये पृथ्वी, ये आकाश ये ठंढी ठंढी
चलती हुयी हवा सब उदासी में डूबी हुयी है
और कोई रास्ता नहीं है इस उदास से
लम्हे से मुक्त होने का।
लम्हा भी क्या जैसे एक दिन जैसे एक महीना
जैसे एक साल जैसे एक सदी और
इसी उदासी में डूबा हुआ मन
तुम्हारे इतिहास से रूबरू होने को
शिद्दत से मचल उठा कोई रास्ता सा दिखा था
तुम्हारे इतिहास में, किताब में भी
और लोगों के बातचीत और व्यवहार में भी।
एक पल तुमसे नजरें मिलीं और खो गया मैं तुममें
और तब से आज तक आनन्द, उमंग, आशा,
विश्वास घेरे रहते हैं मुझे हर पल
हालांकि उदासी के हालात आज भी है ज्यों के त्यों
मुझसे थोड़ी दूर और मैं तुम्हारे साथ साथ
उनको देखता रहता हूँ मुस्कराता रहता हूँ
और सोचता रहता हूँ कितना दिलचस्प है ये जीवन।
जो है वो नहीं है जो नहीं है वो उपस्थित है।