एक तीक्ष्ण प्रश्न उठा है आज
एक तीक्ष्ण प्रश्न उठा है आज
इस क्षणभंगूर जीवन में मेरे मन में,
यह एक सवाल उपजता कई बार !
स्त्रियों के काम की क़ीमत और,
इज़्ज़त क्यों नहीं देता है परिवार !
स्त्रियों को बनानी ही होगी अब,
अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान !
उसके द्वारा किये कामों की क़ीमत,
क्या लगा पायेगा ये संसार अनुमान !
स्त्री क्योंक दोयम दर्ज़े की कहलाती,
क्यों है वह बेबस और इतनी लाचार !
यही एक तीक्ष्ण और सटीक प्रश्न आज,
सर उठाए खड़ा है मन के भरे दरबार !