एक रूप नया पाई थी
एक रूप नया पाई थी
इस ठंड भरी हवाओं को छोड़ रातों में,
कुछ इस तरह मोबाइल में डूबा था
जैसे मै खुद से बे वजह रूठा था।
साहसा मैंने, कदम बढ़ाई इस दुनिया में,
कुछ सुना, जैसे मुझपे ताने थे
ओह, ये तो मेंढक के गाने थे।
चला बैठने उस वीरान जगह पे,
जहां हवाएं जिस्म से टकराती थी
बस फिर क्या था, रूह मचल जाती थी।
दो पल एकांत बैठ,
उन अंधेरों से आंख मिलाई थी,
खुद कि नींद भगा,
दुनिया की एक रूप नई पाई थी
एक रूप नई पाई थी।